सारागढ़ी युद्ध के 127 साल: दस हजार अफगान हमलावरों पर भारी पड़े थे 21 सिख सैनिक
Battle of Saragarhi: सारागढी का युद्ध 12 सितंबर 1897 को हुआ था। यह युद्ध ब्रिटिश भारतीय सेना और अफगानों के बीच हुआ था। इस युद्ध के विच सिखों की 36 रेजिमेंट की 4 बटालियन के 21 जट्ट सिखों ने 10000 से ज्यादा अफगानों का सामना किया और शहीद होने तक 600 से ज्यादा अफगानों को मार दिया था। युद्ध (Saragarhi) में शामिल सभी 21 सैनिकों को शहीद होने के बाद ‘इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट’ से सम्मानित किया गया | उस समय किसी भारतीय सैनिक को मिलने वाला यह सब से बड़ा वीरता पुरस्कार था। भारतीय सेना की सिख रेजिमेंट की चौथी बटालियन हर साल 12 सितंबर को सारागढ़ी दिवस के रूप में इस लड़ाई को याद करती है।
युद्ध की शुरुआत
युद्ध (Saragarhi) की शुरुआत यह युद्ध सुबह 8 बजे से शुरू हुआ । सारागढ़ी के पास दो किले बने हुए थे। उन किलो के ऊपर खड़े हुए एक सैनिक ने देखा कि पठान 10000 की सेना लेकर उनकी तरफ बढ़ रहे हैं। सिपाही गुरमुख सिंह ने होलोग्राफ के माध्यम से कर्नल हॉटन को संदेश भेजा कि दुश्मन ने बड़ी संख्या में सारागढी की चौकी पर हमला किया है। जिसे सुन कर सारी सेना त्यार हो गई। अंग्रेजो की सेना का हबलदार उस समय ईशर सिंह था। ईशर सिंह ने उसी समय अंग्रेज अफ़सर को इस बात के बारे में बताया तो अंग्रेज अफ़सर ने उसे कहा कि तुम अपनी जगह तैयार हो जाओ। जिस जगह यह किले बने हुए थे वो जगह शेरे पंजाब महाराजा रणजीत सिंह की हुआ करती थी |
कमांडर के आदेश पर इन जवानों ने जवाब में फायरिंग शुरू कर दी, लगभग आधे घंटे की गोलीबारी के बाद, नायक लाभ सिंह, भगवान सिंह और सिपाही जीवन सिंह चौकी से बाहर आये और पठानों पर गोलीबारी शुरू कर दी। सारागढी (Saragarhi) पोस्ट के अंदर, सैनिकों ने अधिक सैन्य हथियार और गोला-बारूद मांगा, लेकिन पोस्ट के अंदर कोई मदद मिलना मुश्किल था। भगवान सिंह के शहीद होने और लाभ सिंह के गंभीर रूप से घायल होने से पहले उन्होंने केवल कुछ ही दुश्मनों को मार गिराया था।
जीवन सिंह और लाभ सिंह ने भगवान सिंह के शव को उठाकर चौकी पर रख दिया। घायल लाभ सिंह ने जमीन पर गिरने तक फायरिंग जारी रखी। ऐसे में वीर सिख सैनिक एक के बाद एक शहीद होते गए और जब गोला-बारूद ख़त्म हो गया तो उन्होंने तलवारों से दुश्मन का मुकाबला किया। वीर सिख सैनिकों की बहादुरी के कारण दुश्मन इस पोस्ट के करीब नहीं पहुंच सके ।
दीवार टूटने के बाद आमने-सामने की लड़ाई
हवलदार ईशर सिंह वापस भीतरी परत में जाने का आदेश देता है, जबकि वह उनकी वापसी को कवर करता रहता है। भीतरी परत के टूटने के बाद बचाव करने वाला एक सैनिक शहीद हो गया |
इस समय तक 2 जवानों को छोड़कर बाकी सभी शहीद हो चुके थे | कुछ देर बाद इन सेनाओं का कमांडर हवलदार ईशर सिंह अकेला रह गया और उसके आसपास 20 साथियों की लाशें पड़ी हुई थीं, वह अपनी राइफल उठाकर सारागढी (Saragarhi) के द्वार पर गया जहां दुश्मन चौकी में घुसने की कोशिश कर रहा था।
बहुत धीरे-धीरे जैसे कि वह फायरिंग रेंज पर बैठा हो, वह अपनी राइफल के पास पहुंचा और कई पठानों को मारते हुए शहीद हो गया। इसके बाद पूरे वातावरण में सन्नाटा छाने लगा और यह सन्नाटा तब खत्म हुआ जब दुश्मन ने देखा कि उसका मुकाबला करने वाला कोई नहीं है। बंदूकें आदि उठाकर उसे आग लगा दी। इस प्रकार श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के यह वीर सिंह एक-एक करके बड़ी वीरता के साथ शहीद होते गये।
सारागाड़ी (Saragarhi) के युद्ध में शहीद हुए वीर सैनिकों के नाम हैं :
- हवलदार ईशर सिंह
- नायक लाभ सिंह
- लांस नायक चंदा सिंह
- सिपाही सुध सिंह
- साहिब सिंह
- उत्तम सिंह
- नारायण सिंह
- गुरमुख सिंह
- जीवन सिंह
- राम सिंह
- हीरा सिंह
- दया सिंह
- भोला सिंह
- जीवन सिंह
- गुरमुख सिंह
- भगवान सिंह
- राम सिंह
- बूटा सिंह
- जीवन सिंह
- आनंद सिंह
- भगवान सिंह
सारागढ़ी के युद्ध का मुख्य कारण
सारागढ़ी के युद्ध का मुख्य कारण स्थानीय पठानों और अंग्रेजों के बीच तनाव था।पठान नहीं चाहते थे कि अंग्रेज यहां अपना किला बनायें ।पाकिस्तान में बना यह किला छह हजार फीट ऊंचा है । 1880 में अंग्रेजों ने तीन चौकियां बनाईं लेकिन वहां के लोगों ने विरोध किया। वहां के स्थानीय लोगों की वजह से उन्हें ये पोस्ट खाली करनी पड़ीं।
1891 में अंग्रेजों ने चौकियों को फिर से खोलना शुरू किया। एक समझौता के तहत उन्हें तीन छोटे किले बनाने की अनुमति मिल गई। इसके बाद भी स्थानीय लोगों ने उनका विरोध किया। 3 सितंबर 1897 को अफगानों की एक बड़ी सेना ने ब्रिटिश चौकियों को घेर लिया, लेकिन बाद में 12 सितम्बर को इस किले को पूरी तरह से घेर लिया गया और युद्ध हुआ।
आइकॉनिक बैटल ऑफ सारागढी
इस लड़ाई पर आइकॉनिक बैटल ऑफ सारागढी किताब लिखी गई है। इस पुस्तक के लेखक ब्रिगेडियर कमलजीत सिंह हैं। यह किताब बताती है कि युद्ध किस समय शुरू हुआ और युद्ध में क्या हुआ और युद्ध में कौन से हथियारों का इस्तेमाल किया गया।
लगभग 09:00 बजे, लगभग 6,000-10,000 अफगान सारागढ़ी में सिग्नलिंग पोस्ट पर पहुंचते हैं। इसमें सिखों के हथियारों का वर्णन उन राइफलों के रूप में किया गया है जो एक समय में 10 राउंड फायर करती थीं। माटिनी हेनरी 303 रफल्स सिखों द्वारा उपयोग किए जाते हैं। इस युद्ध में 21 सिख सैनिक थे, प्रत्येक सिख के पास 400 गोलियाँ थीं, जिनमें से 100 उसकी जेब में और 300 रिजर्व में रखी हुई थीं।
सारागढ़ी को नष्ट करने के बाद
सारागढ़ी को नष्ट करने के बाद, अफ़गानों ने अपना ध्यान गुलिस्तान की ओर लगाया, लेकिन इसमें बहुत देर हो चुकी थी, किले पर कब्ज़ा करने से पहले 13-14 सितंबर की रात को अतिरिक्त सेनाएँ पहुँच गईं। उन्होने बाद में स्वीकार किया कि 21 सिख सैनिकों के खिलाफ लड़ाई के दौरान उनके लगभग 180 सैनिक मरे गए थे। जब राहत दल पहुंचा तो चौंकी के आसपास लगभग 600 शव देखे गए थे।
अंग्रेजों द्वारा इसे वापस लेने के बाद, सारागढ़ी की ईंटों का उपयोग सेनानियों के लिए एक स्मारक बनाने के लिए किया गया था। अंग्रेजों दुबारा उनके लिए अमृतसर और फ़िरोज़पुर में सारागढ़ी गुरुद्वारे भी बनवाये। सारागढ़ी की लड़ाई अभियान में कुल हताहतों की संख्या लगभग 4,800 हो चुकी थी।
इस लडाई से संबंधित टीवी पर..
टीवी पर चलने वाली श्रृंखला, 21 सरफरोश – सारागढ़ी 1897, 12 फरवरी 2018 से 11 मई 2018 तक डिस्कवरी जीत पर चली । यह श्रृंखला इस लडाई पर बनी हुई है। जिसमें मोहित रैना, मुकुल देव और बलराज सिंह खेहरा ने बहुत अच्छा अभिनय किया । इस पर बॉलीवुड मैं एक हिंदी फिल्म केसरी बनी हुई है