Bharat Ratna: इन पांच हस्तियों को मिलेगा भारत रत्न, जानिए इनके बारे कुछ ख़ास किस्से
भारत सरकार द्वारा भारत में हरित क्रांति के जनक और प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक डाॅ. एमएस स्वामीनाथन सहित पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह, पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव, लाल कृष्ण आडवाणी और कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न (Bharat Ratna) दिया जाएगा |
1. हरित क्रांति के जनक एमएस स्वामीनाथन
हरित क्रांति के जनक एमएस स्वामीनाथन को भारत रत्न (Bharat Ratna) दिया जाएगा | स्वामीनाथन ने कृषि का अध्ययन इस उद्देश्य से किया कि देश में भोजन की कोई कमी न हो। दरअसल, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 1943 में बंगाल में भयानक अकाल पड़ा, जिसने स्वामीनाथन को काफी हद तक प्रभावित किया ,तब उन्होंने 1944 में मद्रास कृषि महाविद्यालय से कृषि विज्ञान में स्नातक की डिग्री प्राप्त की।
स्वामीनाथन (एमएस स्वामीनाथन) आनुवंशिकी और पौधों के प्रजनन का अध्ययन करने के लिए 1947 में दिल्ली में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) चले गए। उन्होंने 1949 में साइटोजेनेटिक्स में मास्टर डिग्री प्राप्त की। इसके साथ ही एमएस स्वामीनाथन ने आलू पर अपना शोध किया।
पुलिस की नौकरी छोड़ी
ऐसा कहा जाता है कि डॉ. एमएस स्वामीनाथन पर उनके परिवार के सदस्यों ने भी सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करने का दबाव डाला था। स्वामीनाथन भी सिविल सेवा परीक्षा में शामिल हुए और भारतीय पुलिस सेवा में चुने गये। इसी दौरान कृषि क्षेत्र में एक अवसर नीदरलैंड में मिला, स्वामीनाथन को पुलिस सेवा छोड़कर नीदरलैंड जाना सही लगा। स्वामीनाथन 1954 में कृषि भारत लोट आए और यहां कृषि के क्षेत्र में काम करना शुरू किया। वह सबसे अच्छे प्रकार के गेहूं की पहचान करने वाले पहले व्यक्ति हैं। इससे भारत में गेहूं के उत्पादन में भारी वृद्धि हुई है।
बचपन में उठा बाप का साया
प्रसिद्ध कृषि विज्ञानी एमएस स्वामीनाथन का जन्म वर्ष 07 अगस्त 1925 को मद्रास प्रेसीडेंसी में हुआ था। स्वामीनाथन केवल 11 वर्ष के थे जब उनके पिता की मृत्यु हो गई। स्वामीनाथ को उनके बड़े भाई ने पढ़ाया और देखभाल की ।
स्वामीनाथ ने देश को अकाल से मुक्त कराने और किसानों को सशक्त बनाने वाली नीतियां बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी अध्यक्षता में एक आयोग का भी गठन किया गया जिसने किसानों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण सिफारिशें की।
पद्म श्री समेत कई पुरष्कारों से सम्मानित
उस समय हुऐ भारत के कृषि पुनर्जागरण ने स्वामीनाथन को ‘कृषि क्रांति आंदोलन’ के वैज्ञानिक नेता के रूप में पहचान दिलाई। सन 1967 में एम. एस. स्वामीनाथन को ‘विज्ञान एवं अभियांत्रिकी’ के क्षेत्र में ‘भारत सरकार’ द्वारा ‘पद्म श्री’, 1972 में ‘पद्म भूषण’ और 1989 में ‘पद्म विभूषण’ से सम्मानित किया गया था।
डॉ. स्वामीनाथन को कई महत्वपूर्ण पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। जिसमें प्रमुख हैं- सामुदायिक नेतृत्व के लिए रेमन मैगसेसे पुरस्कार (1971)मिला था। इस के साथ ही उनको अल्बर्ट आइंस्टीन वर्ल्ड साइंस अवॉर्ड (1986), और प्रथम वर्ल्ड फूड प्राइज़ (1987),अन्य वोल्वो, टायलर और यूएनईपी सासाकावा प्राइज़ फॉर एनवायरनमेंट, इंदिरा गांधी प्राइज़ फॉरपीस,डिसआर्मामेंट एंड डेवलपमेंट, फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट फोर फ्रीडम्स मेडल, महात्मा गांधी प्राइज़ ऑफ यूनेस्को (2000) और लाल बहादुर शास्त्री नेशनल अवॉर्ड (2007), काफी सारे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है ।
उनकी महान विद्वत्ता को स्वीकरते हुए इंग्लैंड की रॉयल सोसाइटी और बांग्लादेश, चीन, इटली, स्वीडन, अमरीका तथा सोवियत संघ की राष्ट्रीय विज्ञान अकादमियों में उन्हें शामिल किया गया है। वह ‘वर्ल्ड एकेडमी ऑफ साइंसेज़’ के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं। 1999 में टाइम पत्रिका ने स्वामीनाथन को 20वीं सदी के 20 सबसे प्रभावशाली एशियाई व्यक्तियों में से एक बताया था। पिछले साल 28 सितंबर 2023 को एमएस स्वामीनाथन का देहांत हो गया | स्वामीनाथन ने देश के कृषि क्षेत्र में बड़ा योगदान दिया |
2. चौधरी चरण सिंह
चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न (Bharat Ratna) दिया जाएगा, चरण सिंह का जन्म 23 दिसंबर 1902 में उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के नूरपुर में एक मध्यम वर्गीय किसान परिवार में हुआ था। उन्होंने 1923 में विज्ञान में ग्रैजुएशन की डिग्री प्राप्त की और 1925 में आगरा विश्वविद्यालय से मास्टर डिग्री प्राप्त की। कानून में पढ़ाई करके उन्होंने अपना करियर गाजियाबाद में शुरू किया। 1929 में वे मेरठ आये और बाद में कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गये।
1937 में पहली विधायक बने
चौधरी चरण सिंह पहली बार 1937 में छपरौली से उत्तर प्रदेश विधान सभा के लिए चुने गए और 1946, 1952, 1962 और 1967 में विधान सभा में अपने निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। वह 1946 में पंडित गोविंद बल्लभ पंत की सरकार में संसदीय सचिव बने और राजस्व, चिकित्सा और सार्वजनिक स्वास्थ्य, न्याय, सूचना आदि विभिन्न विभागों में काम किया।
जून 1951 में उन्हें कैबिनेट राज्य मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया और न्याय और सूचना विभाग का प्रभार दिया गया। बाद में 1952 में, वह डॉ. संपूर्णानंद के मंत्रिमंडल में राजस्व और कृषि मंत्री बने। अप्रैल 1959 में जब उन्होंने इस पद से इस्तीफा दिया, तब वे राजस्व और परिवहन विभाग के प्रभारी थे।
इसके साथ ही सी.बी वह गुप्ता मंत्रालय में गृह और कृषि मंत्री (1960) थे। वह सुचेता कृपलानी के मंत्रालय में कृषि और वन मंत्री (1962-63) थे। चरण सिंह ने 1965 में कृषि विभाग छोड़ दिया और 1966 में स्थानीय स्वशासन विभाग का कार्यभार संभाला।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने
3 अप्रैल 1967 को चरण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और 17 अप्रैल 1968 को उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। कांग्रेस के विभाजन के बाद चरण सिंह कांग्रेस पार्टी के समर्थन से 17 फरवरी 1970 को दूसरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। हालाँकि, 2 अक्टूबर 1970 को राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया। चरण सिंह ने उत्तर प्रदेश में विभिन्न पदों पर कार्य किया और एक सख्त नेता के रूप में जाने गए, जिन्होंने प्रशासन में अक्षमता, भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई।
भूमि सुधार के लिए किये गये कार्य
चरण सिंह को उत्तर प्रदेश में भूमि सुधारों के लिए भी जाना जाता है। उन्होंने विभागीय ऋण राहत विधेयक, 1939 का मसौदा तैयार करने और उसे अंतिम रूप देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसने ग्रामीण देनदारों को राहत प्रदान की। उनकी पहल का नतीजा यह हुआ कि उत्तर प्रदेश में मंत्रियों के वेतन और अन्य लाभों में भारी कमी कर दी गई। मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने भूमि धारण अधिनियम, 1960 लाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह अधिनियम भूमि की अधिकतम सीमा को कम करने के उद्देश्य से लाया गया था ताकि इसे पूरे राज्य में एक समान बनाया जा सके।
सिर्फ 23 दिन के प्रधानमंत्री रहे
उल्लेखनीय है कि चरण सिंह ने प्रधान मंत्री के रूप में केवल 23 दिनों की सेवा के बाद 20 अगस्त 1979 को इस्तीफा दे दिया और वह एकमात्र प्रधान मंत्री बने जिन्हें संसद में कभी भी विश्वास मत प्राप्त नहीं हुआ। क्योंकि जब संसद में विश्वास मत होना था तो इंदर गांधी ने अपना समर्थन वापस ले लिया था |
देश में ऐसे कम ही राजनेता हुए हैं जिन्होंने जनता के बीच रहकर और सहजता से काम करके इतनी लोकप्रियता हासिल की हो। लाखों किसानों के बीच रहकर चरण सिंह को जो आत्मविश्वास मिला उससे उन्हें बहुत ताकत मिली।
चौधरी चरण सिंह बहुत सादा जीवन जीते थे और खाली समय में पढ़ते-लिखते थे। उन्होंने भारत में गरीब किसानों और गरीबी तथा उसके समाधान पर किताबें लिखीं। चौधरी चरण सिंह का 29 मई 1987 को 84 वर्ष की आयु में निधन हो गया।
3. पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव
पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव को भी मरणोपरांत देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न (Bharat Ratna) से सम्मानित किया जाएगा। लगातार आठ चुनाव जीतने और कांग्रेस पार्टी में 50 साल से अधिक समय बिताने के बाद नरसिम्हा राव भारत के प्रधान मंत्री बने थे। उन्होंने भारत में आर्थिक उदारीकरण में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
पीवी नरसिम्हा राव का जन्म 28 जून 1921 को आंध्र प्रदेश के करीमनगर में हुआ था। उन्होंने उस्मानिया विश्वविद्यालय, हैदराबाद, मुंबई विश्वविद्यालय और नागपुर विश्वविद्यालय से पढ़ाई की। नरसिम्हा राव के तीन बेटे और पांच बेटियों सहित आठ बच्चे थे।
पेशे से कृषि माहिर और वकील के नाते उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया और कुछ महत्वपूर्ण विभागों का प्रभार संभाला। वह 1962 से 1964 तक कानून और सूचना मंत्री, 1964 से 1967 तक कानून और न्याय मंत्री, 1967 में स्वास्थ्य और चिकित्सा मंत्री और 1968 से 1971 तक आंध्र प्रदेश सरकार में शिक्षा मंत्री रहे। वह 1971 से 1973 तक आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे। वह 1975 से 1976 तक अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव, 1968 से 1974 तक आंध्र प्रदेश की तेलुगु अकादमी के अध्यक्ष और 1972 तक दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, मद्रास के उपाध्यक्ष रहे।
नरसिम्हा 1957 से 1977 तक आंध्र प्रदेश विधान सभा के सदस्य, 1977 से 1984 तक लोकसभा के सदस्य रहे और दिसंबर 1984 में रामटेक से आठवीं लोकसभा के लिए चुने गए। 1978-79 में लोक लेखा समिति के अध्यक्ष के रूप में, उन्होंने लंदन विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ एशियन एंड अफ्रीकन स्टडीज द्वारा दक्षिण एशिया पर आयोजित एक सम्मेलन में भाग लिया।
नरसिम्हा भारती विद्या भवन के आंध्र केंद्र के अध्यक्ष भी थे। वह 14 जनवरी 1980 से 18 जुलाई 1984 तक विदेश मंत्री, 19 जुलाई 1984 से 31 दिसंबर 1984 तक गृह मंत्री और 31 दिसंबर 1984 से 25 सितंबर 1985 तक रक्षा मंत्री रहे। 5 नवंबर 1984 से उनके पास योजना मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार भी था। 25 सितंबर 1985 से वे राजीव गांधी सरकार के मंत्रिमंडल में मानव संसाधन विकास मंत्री के पद पर रहे।
देश के प्रधानमंत्री बनने से पहले नरसिम्हा राव ने तीन भाषाओं में प्रचार किया था | उन्होंने तीन सीटें जीतीं और आज के नेताओं की तुलना में वे अधिक जमीन से जुड़े हुए व्यक्ति थे। नरसिम्हा 10 भाषाएँ बोल सकते थे और अनुवाद में भी निपुण थे। नरसिम्हा राव 20 जून 1991 से 16 मई 1996 तक देश के प्रधानमंत्री रहे। जब वह पहली बार विदेश गये तब उनकी उम्र 53 वर्ष थी। 60 साल की उम्र पार करने के बाद पीवी नरसिम्हा राव ने दो कंप्यूटर भाषाएं सीखीं और कंप्यूटर कोड बनाया।
देश में लाइसेंस-परमिट राज्य को ख़त्म करना
24 जुलाई 1991 को तत्कालीन वित्त मंत्री डॉ. नरसिम्हा राव सरकार का पहला बजट था। मनमोहन सिंह ने तथाकथित ‘लाइसेंस-परमिट राज’ की समाप्ति की घोषणा की थी | नरसिम्हा राव सरकार का सबसे महत्वपूर्ण सुधार जुलाई 1991 और मार्च 1992 के बीच हुआ। जब राव सरकार में वित्त मंत्री रहे डॉ. मनमोहन सिंह ने फरवरी 1992 में अपना दूसरा बजट पेश किया, तो राव सरकार कम मत की सरकार थी।
सरकार द्वारा शुरू किए गए आर्थिक उदारीकरण के फैसलों का विरोध शुरू हो गया था और न केवल विपक्ष में बैठे विपक्षी दल, बल्कि सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी भी इसका विरोध कर रही थी। अर्जुन सिंह और वायलर रवि कांग्रेस पार्टी के आंतरिक विरोध के प्रतीक बन गए। पार्टी की भावनाओं को समझते हुए, राव ने अप्रैल 1992 में तिरूपति में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) की बैठक बुलाई।
वहां उन्होंने अपना प्रसिद्ध भाषण ‘द टास्क अहेड’ दिया। जिसमें उन्होंने बाजार, अर्थव्यवस्था और राज्य समाजवाद के बीच बीच का रास्ता चुनने की बात कही और अपनी नीतियों के समर्थन में जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी का हवाला दिया. यहां अपने भाषण में उन्होंने एक दूरदर्शी नीति की रूपरेखा प्रस्तुत की जिसे समावेशी विकास रणनीति के नाम से जाना जाता है।
4. पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर
समाजवादी नेता, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और वंचितों के मसीहा कर्पूरी ठाकुर को उनकी जन्मशती के अवसर पर देश का सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न'( देने की घोषणा की है। यह सम्मान उन्हें मरणोपरांत दिया जा रहा है |
कर्पूरी ठाकुर पिछड़े वर्गों के हितों की वकालत करने के लिए जाने जाते थे। वह सर्वोच्च नागरिक सम्मान पाने वाले बिहार के तीसरे व्यक्ति होंगे। उनसे पहले यह सम्मान प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद और लोकनायक जय प्रकाश नारायण को दिया गया था | बिहार में जन्मे बिस्मिला खान को भी भारत रत्न से सम्मानित किया गया है। हालाँकि, उनका जन्मस्थान उत्तर प्रदेश का वाराणसी ही रहा। उनका परिवार आज भी काशी में रहता है।
5. लाल कृष्ण आडवाणी
बीजेपी के प्रमुख चेहरों में से एक लाल कृष्ण आडवाणी को भारत रत्न से सम्मानित करने की घोषणा की गई है | बीजेपी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी को 96 साल की उम्र में भारत रत्न से सम्मानित किया जाएगा | वह पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के बाद देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित होने वाले दूसरे भाजपा नेता हैं।
लाल कृष्ण आडवाणी कौन हैं ?
भाजपा के वरिष्ठ नेता और देश के सातवें पूर्व उपप्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी (Lal Krishna Advani) का जन्म 8 नवंबर, 1927 को पाकिस्तान के कराची में एक हिंदू सिंधी परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम किशनचंद आडवाणी और माता का नाम ज्ञानी देवी है। उनके पिता पेशे से एक उद्योगपति थे। उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा सेंट पैट्रिक हाई स्कूल, कराची से प्राप्त की थी ।
उसके बाद उन्हें डीजी नेशनल स्कूल, हैदराबाद, सिंध में दाखिला मिल गया। 1947 के विभाजन के दौरान उनका परिवार पाकिस्तान छोड़कर मुंबई में बस गया। यहां उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ बॉम्बे लॉ कॉलेज से कानून की पढ़ाई की। उनकी पत्नी का नाम कमला आडवाणी है। उनके बेटे का नाम जयंत अडवाणी और बेटी का नाम प्रतिभा अडवाणी है।
लाल कृष्ण आडवाणी ने BJP की नींव रखी
2002 से 2004 के बीच अटल बिहारी वाजपेई की सरकार में आडवाणी भारत के सातवें उपप्रधानमंत्री के पद पर रहे। इससे पहले, वह 1998 से 2004 के बीच भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में गृह मंत्री थे। वह उन चेहरों में से हैं जिन्होंने भारतीय जनता पार्टी की नींव रखी। 10वीं और 14वीं लोकसभा के दौरान उन्होंने विपक्ष के नेता की भूमिका बखूबी निभाई है | उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के माध्यम से की|
आडवाणी 1970 से 1972 तक जनसंघ की दिल्ली इकाई के अध्यक्ष रहे। वह 1973 से 1977 तक जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे। इसके साथ ही 1970 से 1989 तक वह चार बार राज्यसभा के सदस्य रहे। इस बीच 1977 में वह जनता पार्टी के महासचिव भी रहे। इसके बाद 1977 से 1979 तक वह केंद्र में मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली जनता पार्टी सरकार में सूचना और प्रसारण मंत्री भी रहे।
लाल कृष्ण आडवाणी 1986-91 और 1993-98 और 2004-05 तक बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे| 1989 में वे 9वीं लोकसभा के लिए दिल्ली से सांसद चुने गये। साथ ही 1989-91 तक वह लोकसभा में विपक्ष के नेता रहे।
इसके बाद 1991, 1998, 1999, 2004, 2009 और 2014 में वह गांधीनगर से लोकसभा सदस्य चुने गये। वह 1998 से 2004 तक एनडीए सरकार में गृह मंत्री रहे। आडवाणी 2002 से 2005 तक अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में उपप्रधानमंत्री भी रहे। इससे पहले 2015 में लाल कृष्ण आडवाणी को देश के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।