History

MS Swaminathan: भारत में हरित क्रांति के जनक एम.एस स्वामीनाथन

Who is MS Swaminathan: भारत में हरित क्रांति के जनक डॉ. एम.एस स्वामीनाथन का पूरा नाम मनकोम्बु संबासिवन स्वामीनाथन है | स्वामीनाथन भारत के महान कृषि वैज्ञानिक थे | उन्होंने 1990 में “सदाबहार क्रांति” शब्द को “संबंधित पारिस्थितिक के अपने दृष्टिकोण का वर्णन किया |

2004 में स्वामीनाथन ने राष्ट्रीय किसान आयोग की अध्यक्षता की थी । वह एक नामी अनुसंधान फाउंडेशन के संस्थापक थे। उन्हें 2007 और 2013 के बीच भारतीय संसद के लिए नामांकित किया गया था। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने भारत में महिला किसानों की मान्यता के लिए एक विधेयक पेश किया।

स्वामीनाथन का जन्म 7 अगस्त 1925 को कुंभकोणम तमिलनाडु, मद्रास प्रेसीडेंसी पिता नाक्जनरल सर्जन एम.के. सांबासिवन और माता पार्वती थंगम्मल सांबाशिवन के घर हुआ। वह अपने परिवार में दूसरे बेटे थे । उनके पिता केरल के अलाप्पुझा जिले के रहने वाले थे। उनके पिता की मृत्यु के समय उनकी आयु 11 साल थी । युवा स्वामीनाथन की देखभाल उनके पिता के भाई ने की थी।

डॉ. एम.एस स्वामीनाथन (MS Swaminathan) की शिक्षा का प्रारंभ एक स्थानीय हाई स्कूल में हुआ । उसके बाद की शिक्षा कुंभकोणम के कैथोलिक लिटिल फ्लावर हाई स्कूल में हुई। वहाँ से उन्होंने 15 साल की उम्र में मैट्रिक पास किया। उनका विस्तृत परिवार चावल, आम और नारियल उगाता था।

इसलिऐ बचपन से ही उनका खेती-किसानी और किसानों से मेल-जोल था । उन्हें इस बात का आभास हुआ के फसलों की कीमत में होते उतार-चढ़ाव का प्राभाव उनके परिवार पर भी पड़ता है, मौसम और कीटों के कारण जो फसलों की बरबादी होती है उस में आय पर होने वाली तबाही भी शामिल है।

उन्होंने माता-पिता की बात को ध्यान में लाकर उच्च शिक्षा प्राणीशास्त्र मेडिकल की पढ़ाई की थी। लेकिन उनके जीवन में परिवरतण तब हुआ । जब उन्होंने 1943 के द्वितीय विश्व युद्ध में बंगाल अकाल और उपमहाद्वीप में चावल की कमी को देखा था।

उन्होंने केरल के तिरुवनंतपुरम के महाराजा कॉलेज से प्राणीशास्त्र में अपनी स्नातक की डिग्री पूरी की थी। इसके बाद उन्होंने 1940 से 1944 तक मद्रास विश्वविद्यालय में अध्ययन किया और कृषि विज्ञान में स्नातक की डिग्री हासिल की थी। इस दौरान उन्हें कृषि विज्ञान के प्रोफेसर कोटा रामास्वामी ने भी पढ़ाया था।

1947 में वह आनुवंशिकी और पादप प्रजनन का अध्ययन करने के लिए नई दिल्ली में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) चले गए। उन्होंने 1949 में साइटोजेनेटिक्स में उच्च विशिष्टता के साथ स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की थी। उनका शोध आलू पर विशेष ध्यान देने के साथ जीनस सोलनम पर केंद्रित था।

सामाजिक दबावों के परिणामस्वरूप उन्हें सिविल सेवाओं की परीक्षाओं में भाग लेना पड़ा। जिसके माध्यम से उन्हें भारतीय पुलिस सेवा के लिए चुना गया। हालाँकि उसी समय, उनके लिए नीदरलैंड में आनुवंशिकी में यूनेस्को फ़ेलोशिप के रूप में कृषि क्षेत्र में एक अवसर पैदा हुआ। उन्होंने उस में आनुवंशिकी को चुना।

उनके दुबारा हरित क्रांति’ कार्यक्रम के साथ ज़्यादा उपज देने वाले गेहूं और चावल के बीज ग़रीब किसानों के खेतों में लगाए गए थे। सन 1966 में उन्होंने मैक्सिको से लाऐ हुऐ बीजों को पंजाब में पैदा होने वाली किस्मों के साथ मिश्रित करके उच्च उत्पादकता वाले गेहूँ के संकर बीज विकसित किए थे। इस क्रांति ने भारत को दुनिया में 25 वर्ष से कम समय में आत्मनिर्भर बना दिया था।

उन्होने निदरलैण्ड के विश्वविद्यालय में जेनेटिक्स विभाग के यूनेस्को फैलो के रूप में भी 1949 से 1950 के दौरान काम किया। 1952 से 1953 में उन्होने अमेरीका स्थित विस्कोसिन विश्वविद्यालय के जेनेटिक्स विभाग में रिर्सच असोशीयेट के रूप में काम किया।

1965 में स्वामीनाथन के भाग्य ने पलटा खाया और उन्हें कोशा स्थित संस्थान में नौकरी मिल गई। यहाँ उन्हें गेहुँ पर शोध कार्य का दायित्व सौंपा गया। साथ ही साथ चावल पर भी उनका शोध चलता रहा।

भारत में काफ़ी सारे गाँव हैं। यहां सबसे ज्यादा लोग गांँव में रहते हैं। यहां के ज्यादातर लोगों का काम खेती करना है। ज्यादा खेती होने के बाद भी यहां के लोगो के बारे में एक बात कही जाती थी। कि यहां के लोग भूखे मारेगे क्योंकि भारत में काफी बार सोखा भी पड चुका था। इस के साथ और भी बहुत सारे कारण इस चीज़ के लिए ज़िम्मेदार हैं |

उन्होने निदरलैण्ड के विश्वविद्यालय में जेनेटिक्स विभाग के यूनेस्को फैलो के रूप में भी 1949 से 1950 के दौरान काम किया। 1952 से 1953 में उन्होने अमेरीका स्थित विस्कोसिन विश्वविद्यालय के जेनेटिक्स विभाग में रिर्सच असोशीयेट के रूप में काम किया।

 1965 में स्वामीनाथन के भाग्य ने पलटा खाया और उन्हें कोशा स्थित संस्थान में नौकरी मिल गई। यहाँ उन्हें गेहुँ पर शोध कार्य का दायित्व सौंपा गया। साथ ही साथ चावल पर भी उनका शोध चलता रहा।

भारत में काफ़ी सारे गाँव हैं। यहां सबसे ज्यादा लोग गांँव में रहते हैं। यहां के ज्यादातर लोगों का काम खेती करना है। ज्यादा खेती होने के बाद भी यहां के लोगो के बारे में एक बात कही जाती थी। कि यहां के लोग भूखे मारेगे क्योंकि भारत में काफी बार सोखा भी पड चुका था। इस के साथ और भी बहुत सारे कारण इस चीज़ के लिए ज़िम्मेदार हैं |

स्वामीनाथन पर महात्मा गांधी के और डॉ. वोरलॉग के विचारों का काफी ज्यादा असर था । उन्होंने डॉ. वोरलोग से काफी कुछ ज्ञान लिया था। डॉ. वोरलोग से लिए ज्ञान और अपनी समझ के साथ उन्होंने गेहुँ की पैदावार में काफी ज्यादा सफलता प्राप्त की थी। उनकी इस सफलता को देख डॉ. वोरलॉग 1971 में पुन: भारत आए वो स्वामीनाथन की इस सफलता से काफी हद तक प्रभावित हुए। 1965 से 1971 तक डॉ. स्वामीनाथन पूसा संस्थान के निदेशक थे। इस दौरान गेहुँ के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य हुए।

 उन्होंने अपने इस काम के ऊपर काफी सारे लेख भी लिखे थे। उनके लिखे हुए इन लेखो के कारण उनकी ख़िय्ति काफी हद तक बढ चुकी थी। बौने किस्म के गेहुँ के बीज उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र और दिल्ली के किसानों को वितरित किये गये। उन्होंने 1967 से 1968 में इस बात पर ज्यादा ध्यान दिया था। कि सिर्फ एक खेत में एक ही फसल ना बोई जाए , उन्होंने कहा था कि हमको और भी काफी सारी फसलों को बोना चाहिए।

 डॉ. स्वामीनाथन को अप्रैल 1979 में योजना आयोग का सदस्य बनाया गया। उनकी सलाह पर आयोग के द्वारा प्रगति पूर्ण कार्य हुए। 1982 तक वे योजना आयोग में रहे। उनके कार्यों को हर जगह सराहा गया। 1983 में वे अंर्तराष्ट्रीय संस्थान मनिला के महानिदेशक बनाये गये और उन्होंने 1988 तक यहाँ कार्य किया। 1983 में वे अंर्तराष्ट्रीय संस्थान मनिला के महानिदेशक बनाये गये और उन्होंने 1988 तक यहाँ कार्य किया।

उस समय हुऐ भारत के कृषि पुनर्जागरण ने स्वामीनाथन को ‘कृषि क्रांति आंदोलन’ के वैज्ञानिक नेता के रूप में पहचान दिलाई। सन 1967 में एम. एस. स्वामीनाथन को ‘विज्ञान एवं अभियांत्रिकी’ के क्षेत्र में ‘भारत सरकार’ द्वारा ‘पद्म श्री’, 1972 में ‘पद्म भूषण’ और 1989 में ‘पद्म विभूषण’ से सम्मानित किया गया था। 

 डॉ. स्वामीनाथन को कई महत्वपूर्ण पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। जिसमें प्रमुख हैं- सामुदायिक नेतृत्व के लिए रेमन मैगसेसे पुरस्कार (1971)मिला था। इस के साथ ही उनकोअल्बर्ट आइंस्टीन वर्ल्ड साइंस अवॉर्ड (1986), और प्रथम वर्ल्ड फूड प्राइज़ (1987),अन्य वोल्वो, टायलर और यूएनईपी सासाकावा प्राइज़ फॉर एनवायरनमेंट, इंदिरा गांधी प्राइज़ फॉरपीस,डिसआर्मामेंट एंड डेवलपमेंट, फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट फोर फ्रीडम्स मेडल, महात्मा गांधी प्राइज़ ऑफ यूनेस्को (2000) और लाल बहादुर शास्त्री नेशनल अवॉर्ड (2007), काफी सारे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है ।

 उनकी महान विद्वत्ता को स्वीकरते हुए इंग्लैंड की रॉयल सोसाइटी और बांग्लादेश, चीन, इटली, स्वीडन, अमरीका तथा सोवियत संघ की राष्ट्रीय विज्ञान अकादमियों में उन्हें शामिल किया गया है। वह ‘वर्ल्ड एकेडमी ऑफ साइंसेज़’ के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं। 1999 में टाइम पत्रिका ने स्वामीनाथन को 20वीं सदी के 20 सबसे प्रभावशाली एशियाई व्यक्तियों में से एक बताया था।

Read More: दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा स्टैच्यू ऑफ यूनिटी बारे में ख़ास बातें

0Shares

Virtaant

A platform (Virtaant.com) where You can learn history about indian history, World histroy, Sprts history, biography current issue and indian art.

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *