History of Bhujia Fort: गुजरात के भुजिया किले की अनोखी दास्तान !
History of Bhujia Fort: भारत में कई महलों और किलों के अस्तित्व का मुख्य कारण भारत में प्रांतीय शासन का अस्तित्व होना है। कुछ किलों और महलों की संरचनाएँ आज भी समय को चुनौती देते हुए आज भी खड़ी हैं और कुछ समय के साथ ढहटी जा रही हैं। इसमें से कच्छ क्षेत्र में भुज की सीमा पर स्थित एक ऐसे ही आकर्षक किले के बारे में बताते हैं |
बहुत खूबसूरत शहर की ओर देखने वाली भुजिया पहाड़ी एक प्रमुख प्राकृतिक संरचना है जिसे महान धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व है। इसको अक्सर ही भेरिया कुमार के खिलाफ भुजंगा की बड़ी जीत से जोड़ा जाता है। यह भुजिया किले के लिए एक आदर्श स्थान के रूप में भी जाना जाता है जो शानदार पहाड़ी की सुंदरता को बढ़ाता है और जड़ेजा सरदारों की रक्षा करता था | इस पहाड़ी की चोटी तक पहुँचने के लिए कम से कम 200 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। भुजिया किला भुजंग नाग मंदिर के नाम से जाना जाता है। हालाँकि, पिछले कुछ वर्षों में ठीक से रखरखाव ना होने के कारण किले की कई इमारतें जर्जर हो गई हैं।
भुजिया किले का इतिहास
कच्छ के राजा अपनी राजधानी को मुगलों, राजपूतों और सिंधु शासकों से बचाने के लिए एक रक्षात्मक किला बनाना चाहते थे। इसलिए पहले राव गोडजी ने 1700 से 1800 ईस्वी में इस शानदार पहाड़ी किले का निर्माण कराया, जहां से वह आराम से अपने दुश्मनों पर नजर रख सकें। इस किले (Bhujia Fort) का निर्माण भुज को आक्रमणकारियों से बचाने के लिए किया गया था।
यह वह समय था जब सभी शासक अपनी राजधानी की रक्षा के लिए ऐसे सामरिक रक्षा स्थानों की तलाश में रहते थे। वैसे अन्य किलों की तरह भुज के इस किले को भी कई हमलों का सामना करना पड़ा। कहा जाता है कि इस किले में लगभग 6 लड़ाइयाँ लड़ी गयीं।
एक बार मुगल सूबेदार (वायसराय) शेर बुलंद खान ने भुजिया किले पर हमला कर दिया। जब यह लड़ाई ख़त्म होने वाली थी, तब नाग बाबा जनजाति के कुछ योद्धा इस किले में घुस गए और भुज के समर्थन में शेर बुलंद खान की सेना से भिड़ गए, जिसमें भुज के शासक विजयी हुए।
भुजंग नागा से जुड़ी पौराणिक कथाएं
कहा जाता है कि भुज क्षेत्र पर नागा सरदारों का भी शासन था। एक बार भीषण युद्ध में नागों का अंतिम सरदार भुजंग मारा गया। उनकी मृत्यु के बाद, जिस स्थान पर वह रहते थे, उसे भुजिया पर्वत और आसपास के क्षेत्र को भुज कहा जाने लगा। यहां के निवासियों ने भुजंग की याद में एक मंदिर बनवाया जो अब भुजंग नाग मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। तभी से इस क्षेत्र के निवासी इस क्षेत्र के नाग देवताओं की पूजा करने लगे।
आजादी के बाद भुजिया किला भारतीय सेना के नियंत्रण में आ गया, जिसका उपयोग कुछ साल तक भारतीय सेना ने सैन्य उद्देश्यों के लिए किया,पर बाद में वह इस जगह से दूसरी जगह चले गए । नाग पंचमी के दिन यहां विशेष पूजा की जाती है और भव्य मेला लगता है। भुज गुजरात के प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। यह गुजरात की राजधानी अहमदाबाद से लगभग 330 किमी की दूरी पर स्थित है।