हैदराबाद रियासत कैसे बनी भारत हिस्सा, आखिर क्यों चलाया ‘ऑपरेशन पोलो’
Hyderabad: हैदराबाद ब्रिटिश राज की सबसे बड़ी रियासत थी। 1724 से 1948 में स्थापित, यह ब्रिटिश सबसे पहले अधीन आने वाला पहला राज्य था जब उन्होंने सहायक गठबंधन समझौते पर हस्ताक्षर किए। जब भारत को आजादी मिली तो एक नए स्टैंडस्टिल समझौते पर हस्ताक्षर किए गए और हैदराबाद नए भारत का हिस्सा बन गया।
हैदराबाद (Hyderabad) राज्य की स्थापना 1713 से 1721 तक मुगलों के अधीन दक्कन के गवर्नर मीर कमर उद दीन खान ने की थी। उनके पास आसफ जाह, निज़ाम उल मुल्क और हैदराबाद के निज़ाम की उपाधियाँ थीं। जब मुग़ल शासन ख़त्म हो रहा था तो उन्होंने अपने आसफ जाही राजवंश की स्थापना की। आसफ इस्लाम के पहले खलीफा के वंशज थे। वह मूल रूप से बगदाद के थे लेकिन 17वीं शताब्दी में भारत आ गए।
निज़ाम को समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया गया जिससे हैदराबाद अंग्रेजों के संरक्षण में आ गया। दूसरे और तीसरे मराठा युद्ध में हैदराबाद ब्रिटिश सहयोगी था। 1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान भी, राज्य ने ब्रिटिश सरकार के साथ एकजुटता बनाए रखी।
17 सितंबर 1948 को निज़ाम का अपनी रियासत को स्वतंत्र राजशाही बनाने का सपना टूट गया था। इस दिन भारतीय सेना ने ऑपरेशन पोलो के तहत सैन्य अभियान चलाकर हैदराबाद को भारत का अभिन्न अंग बनाया था। यह बिल्कुल भी आसान नहीं था।
हैदराबाद (Hyderabad) वर्तमान में भारत का एक शहर है जो अपनी विविध संस्कृतियों के लिए जाना जाता है। हैदराबाद के नामकरण को लेकर एक कहानी बहुत मशहूर है | ऐसा कहा जाता है कि मुहम्मद कुली कुतुब शाह ने सबसे पहले अपनी पत्नी भागमती के नाम पर इसका नाम भाग्यनगर रखा था। बाद में भागमती को हैदर-महल की उपाधि दी गई थी और इसलिए इसका नाम हैदराबाद पड़ गया । यहां की बिरयानी भी बहुत मशहूर माना जाता है |
हैदराबाद में ‘ऑपरेशन पोलो’ (Operation Polo)
हैदराबाद रियासत का भारत में विलय करने के लिए 13 सितंबर को ऑपरेशन पोलो चलाया था |17 सितंबर 1948 को निज़ाम का अपनी रियासत को स्वतंत्र राजशाही बनाने का सपना टूट गया था। यही वह दिन था जब भारतीय सेना ने ऑपरेशन पोलो के तहत सैन्य अभियान चलाकर हैदराबाद को भारत का अटूट अंग बनाया था।
हैदराबाद (Hyderabad) वर्तमान में भारत का एक शहर है जो अपनी विविध संस्कृतियों के लिए जाना जाता है। हैदराबाद के नामकरण को लेकर एक कहानी बहुत मशहूर है. ऐसा कहा जाता है कि मुहम्मद कुली कुतुब शाह ने सबसे पहले अपनी पत्नी भागमती के नाम पर इसका नाम भाग्यनगर रखा था। बाद में भागमती को हैदर-महल की उपाधि दी गई और इसलिए इसका नाम हैदराबाद पड़ा। यहां की बिरयानी देश भर में भी बहुत मशहूर है |
भारत की सबसे बड़ी रियासत
15 अगस्त 1947 को जब भारत स्वतंत्र हुआ, तो हैदराबाद (Hyderabad) देश की सबसे बड़ी रियासतों में से एक था और उस पर निज़ाम उस्मान अली खान का शासन था। जिसे दुनिया का सबसे अमीर और कंजूस व्यक्ति भी कहा जाता है। हैदराबाद रियासत इतनी विकसित थी कि अंग्रेजों के समय में भी इसकी अपनी डाक तार सेवा, रेलवे सेवा और एक बड़ी सेना थी।
इस कारण यह रियासत स्वतंत्र भारत के लिए महत्वपूर्ण थी। हैदराबाद के निज़ाम भारत में विलय के लिए तैयार नहीं थे। ‘लैप्स ऑफ पैरामेंसी’ प्रावधान का प्रयोग करते हुए उसने अपने राज्य को स्वतंत्र घोषित कर दिया था । निज़ाम ने साफ़ कर दिया था कि उनका राज्य न तो पाकिस्तान के साथ जाएगा और न ही भारत के साथ।
पंडित नेहरू के नेतृत्व वाली भारत सरकार को इसकी जानकारी थी, इसलिए वह हर कदम सोच-समझकर उठा रहे थे। सरकार का कोई भी कदम हैदराबाद के लोगों पर असर डाल सकता था, ऐसे में सरकार के पास हैदराबाद को भारत का हिस्सा बनाने के दो विकल्प थे | पहला रास्ता था बातचीत और दूसरा था सैन्य कार्रवाई करना |
कहा जाता है कि भारत के पहले प्रधानमंत्री नेहरू ने आखिरी वक्त तक दूसरा विकल्प ही रखा। वह भारत के अंतिम वायसराय और गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन की मदद से पहले विकल्प पर आगे बढ़ना चाहते थे।
जबकि तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल पहले दिन से ही सैन्य कार्रवाई करना चाहते थे। दरअसल, सरदार पटेल को लगता था कि हैदराबाद पाकिस्तान के संपर्क में है |
मशहूर लेखक कुलदीप नैय्यर की आत्मकथा ‘बियॉन्ड द लाइन्स’ (Beyond the Lines) कि मुताबक हैदराबाद के निज़ाम मुहम्मद अली जिन्ना से बातचीत कर रहे थे और उनसे मदद मांगी थी। निज़ाम चाहते थे कि जिन्ना उनकी मदद करें, लेकिन उन्हें समर्थन नहीं मिला | जिन्ना ने निज़ाम की मदद को पूरी तरह से अस्वीकार कर दिया। उन्होंने कहा था कि वह मुट्ठी भर लोगों के लिए पाकिस्तान को खतरे में नहीं डाल सकते |
दूसरी और भारत सरकार ने मन बना लिया था कि वह किसी भी कीमत पर हैदराबाद (Hyderabad) का भारत में विलय करेगी, जिसके लिए हर संभव प्रयास किये गये। कहा जाता है कि एक समय था जब निज़ाम भारत सरकार के हस्तक्षेप से परेशान थे।
जब सरकारी अधिकारियों ने निज़ाम पर अधिक दबाव बनाने की कोशिश की तो उन्होंने यहां तक कह दिया कि अगर उन्हें मजबूर किया गया तो वे पाकिस्तान में विलय कर सकते हैं। इतना ही नहीं, निज़ामों ने विदेशों से हथियार खरीदने की भी तैयारी कर ली थी, लेकिन भारत सरकार ने उनकी सभी योजनाओं को विफल कर दिया था।
हैदराबाद निज़ाम की सेना
लगभग 20 हजार रजाकार सेना के रूप में निज़ाम के साथ खड़े थे। के.एम.मुंशी ने अपनी किताब ‘एंड ऑफ एन एरा’ में कासिम रिज़वी का जिक्र किया है और लिखा है कि कासिम रिज़वी की वजह से हैदराबाद का निज़ाम भारत विरोधी हो गया था |
इसका खामियाजा हैदराबाद की जनता को भुगतना पड़ा और हैदराबाद रियासत में दंगे हो गए। भारत सरकार ने निज़ाम को भारत में विलय के लिए तैयार करने की पूरी कोशिश की।
पहले उप-प्रधानमंत्री और गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने खुद निज़ाम से मुलाकात की और हैदराबाद (Hyderabad) को भारत में शामिल होने का अनुरोध किया, लेकिन निज़ाम ने उनके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया और एक स्वतंत्र राष्ट्र पर जोर दिया। जब स्थिति में सुधार होता नहीं दिख रहा था तो सरदार पटेल सख्त हो गये और सैन्य कार्रवाई के लिए तैयार हो गये।
भारतीय सेना का हैदराबाद कूच
इतिहासकार कहते हैं कि इसी वजह से उन्होंने नेहरू से लड़ाई भी की थी | अंततः पार्टी नेताओं ने बैठक की और नेहरू ने अपनी संतोषजनक सहमति दे दी। सारी तैयारियों के बाद सरदार पटेल के निर्देश पर भारतीय सेना ने 13 सितंबर 1948 को हैदराबाद की और कूच कर दिया |
गौरतलब है कि भारत के तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल रॉबर्ट बुचर सरदार वल्लभ भाई पटेल के फैसले से सहमत नहीं थे,उन्हें चिंता थी कि पाकिस्तानी सेना जवाब में कोई कार्रवाई कर सकती है | गवर्नर जनरल राजगोपालाचारी ने भी पंडित जवाहर लाल नेहरू से मिलकर सैन्य कार्रवाई रोकने की कोशिश की, लेकिन भारतीय सेना पहले ही हैदराबाद में प्रवेश कर चुकी थी और ‘ऑपरेशन पोलो’ शुरू हो चुका था।
अंत: मेजर जनरल जेएन चौधरी की अगवाई में भारतीय सेना ने हैदराबाद की सेना का मुंहतोड़ जवाब दिया और निजाम को झुकना पड़ा था और 17 सितंबर 1947 को हैदराबाद का भारत में विलय हो गया | 5 दिन तक चले ‘ऑपरेशन पोलो’ में भारतीय सेना ने अपने 66 जवान खोए थे | ‘ऑपरेशन पोलो’ के नाम को लेकर कहा जाता है कि यह नाम इसलिए रखा गया था क्योंकि हैदराबाद में विश्व में सबसे ज्यादा 17 पोलो के मैदान थे |
अंतत: मेजर जनरल जेएन चौधरी की अगवाई में भारतीय सेना ने हैदराबाद की सेना का मुंहतोड़ जवाब दिया और निजाम को झुकना पड़ा था और 5 दिन तक चले ‘ऑपरेशन पोलो’ तहत 17 सितंबर 1947 को हैदराबाद का भारत में मिला लिए गया | कहा जाता है कि भारतीय सेना के 66 जवान शहीद हुए थे | कहा जाता है कि ‘ऑपरेशन पोलो’ का नाम इसलिए रखा गया था क्योंकि हैदराबाद में विश्व में सबसे ज्यादा 17 पोलो के मैदान थे |
FAQ:-
Que .1: हैदराबाद रियासत का विलय कब हुआ था ?
Ans: 17 सितंबर 1948 को निज़ाम का अपनी रियासत को स्वतंत्र राजशाही बनाने का सपना टूट गया था। इस दिन भारतीय सेना ने ऑपरेशन पोलो के तहत सैन्य अभियान चलाकर हैदराबाद को भारत का अभिन्न अंग बनाया था।
Que. 2: हैदराबाद रियासत के निजाम कौन थे ?
Ans: 15 अगस्त 1947 को जब भारत स्वतंत्र हुआ, तो हैदराबाद देश की सबसे बड़ी रियासतों में से एक था और उस पर निज़ाम उस्मान अली खान का शासन था। जिसे दुनिया का सबसे अमीर और कंजूस व्यक्ति भी कहा जाता है।
Que 3: हैदराबाद रियासत के विलय समय भारत का प्रधान मंत्री कौन थे ?
Ans: प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू
Que 4: हैदराबाद में चलाया ‘ऑपरेशन पोलो’ क्या है ?
Ans: हैदराबाद रियासत का भारत में विलय करने के लिए 13 सितंबर को ऑपरेशन पोलो चलाया था | 17 सितंबर 1948 को भारतीय सेना ने ऑपरेशन पोलो के तहत सैन्य अभियान चलाकर हैदराबाद को भारत का अटूट अंग बनाया था।