लाल बहादुर शास्त्री की मौत आज भी एक रहस्य!, जानिए शास्त्री जी से जुडी अनसुनी बातें
लाल बहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shastri) भारत के एक महान राजनीतिवान हुए हैं। लाल बहादुर शास्त्री जिन्होंने अपने जीवन काल में 1964 से 1966 तक भारत के प्रधान मंत्री के साथ साथ 1961 से 1963 तक देश के गृह मंत्री के तौर पर भी काम किया है। शास्त्री जी का जन्म 2 अक्टूबर 1904 मुगलसराय में शारदा प्रसाद और माता रामदुलारी के घर हुआ था । वैसे तो शास्त्री जी का जन्म उनके नाना के घर हुआ था। उनके माता पिता दोनों ही अपने जीवन काल में शिक्षक रहे थे ।
शास्त्री जी (Lal Bahadur Shastri) अपने परिवार में दूसरे और बेटे मेरे सबसे बड़े बेटे थे । जब शास्त्री जी की उम्र 18 महीने हो गई तब शास्त्री जी के पिता जी की मृत्यु हो गई थी। अपने पिता जिनकी मृत्यु के बाद उनकी माता जी उन्हें अपने पिता जी के घर ले आई थी ।
उसी समय से शास्त्री जी अपने नाना जी के घर रह रहे थे। इनके नाना जी की मृत्यु के बाद उनके परिवार के दूसरे लोगों ने उनकी देखभाल की थी । उन्होंने शास्त्री जी की पड़ाई अच्छी तरह से ध्यान रख के करवाई। वह अपने परिवार में सबसे ज्यादा पढ़ाई करने वाले बच्चे थे।
1921 के समय में जब वह 16 साल के थे तो उस समय चल रहे स्वतंत्रता आंदोलन से उनका कुछ भी लेना देना नही था । वह इस आंदोलन से दूर थे। शास्त्री जी जिस स्कूल से पढाई कर रहे थे ।उस स्कूल के एक शिक्षक यो कि एक सच्चे दिल से इस आंदोलन से जुड़े हुए थे। उन्होंने शास्त्री जी को अपने बच्चों को पढ़ाने के किया बोला था ।
शास्त्री जी को इसके रूप में उनके अपने शिक्षक से अर्थिक सहयाता मिलती थी ।शास्त्री जी अपने इस समय में अपने उसी शिक्षक से काफ़ी ज्यादा प्रभावित हुए थे। उनके इस प्रभाव के कारण उन्होंने गांधी जी और मदन मोहन मालविया जैसे विद्वान लोगों का अध्ययन किया था।
1921 में जब शास्त्री जी (Lal Bahadur Shastri) ने 10वीं कक्षा में प्रवेश किया पढ़ाई करते समय में मदन मोहन जी दुबारा एक बैठक बुलाई गई थी जिस में सब बच्चों को बोला गया था कि आप सब अपना नाम स्कूल से नाम कटवाकर इस आंदोलन में भाग लीजिए। तब शास्त्री ने अपना नाम स्कूल से वापस ले लिया था। उसके बाद वो भी इस आंदोलन में शामिल हो गए थे । उनको पर पुलिस के द्वारा पकड़ लिया गया था। उनकी उम कम होने के कारण उनको छोड दिया गया।
शास्त्री जी जेपी कृपलानी के दुबारा ही गाँधी जी से मिले थे। 1925 के समय में जब शास्त्री जी ने अपनी डिग्री ली थी । तब उनकी उस डिग्री के कारण ही शास्त्री जी के नाम के पीछे शास्त्री लगना शुरू हो गया । वेसे शास्त्री जी का नाम शास्त्री नहीं था । शास्त्री जी लाला लाजपत दुबारा चलाऐ गए लोक सेवक मंडल में खुद का नाम लिखवा दिया। उसके बाद वो गांधी जी के साथ मिल के हरिजन लोगों की सहायाता करने लग गए।
1928 में शास्त्री जी (Lal Bahadur Shastri) गांधी जी के साथ मिल कर राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य बनने के लिए काम करने लगे। उसके बाद 1937 से 1940 तक उन्हेंो ने व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लिया था । उसे कारण इनको जेल में भी जाना था। 8 अगस्त 1942 को जब गांधी जी ने भारत छोड़ो आंदोलन के बारे में बोला था । तो उस समय शास्त्री जी जेल से बाहर आये थे उनको ने भी इसमे भाग लिया था। और वह इसका समर्थन करने के लिए इलाहबाद भी गए थे। उन्होंने 1946 तक इसमे सुचारु रूप से काम किया था।
1951 में जब नेहरू जी प्रधान मंत्री थे । तो उस समय शास्त्री जी राष्ट्रीय कांग्रेस के महासचिव थे। 1952 से 1962 तक के सारे चुनाव में शास्त्री जी ने जीत हासिल की थी। युपी में चुनाव में हुई जीत के बाद ऐसा लग रहा था कि उनको अब युपी में ही एक गृह मंत्री के रूप में रखा जाएगा । नेहरू जी ने पर उनको केंन्द् में मंत्री बना लिया था। केंद्रीय मंत्री होने के बाद शास्त्री जी ने रेल मंत्री के रूप में कार्य किया था।
1956 तक शास्त्री जी (Lal Bahadur Shastri) केंद्रीय मंत्री रहे थे पर उनके कायकाल में एक रेल दुर्गघटना हुई जिसके कारण उन्होंने अपना अस्तीफा दे दिया था। 1961 में शास्त्री जी ने गृह मंत्री के तौर पर काम किया था।
1964 को जब नेहरू जी की मृत्यु हुई तब उसके बाद कामराज ने शास्त्री जी को प्रधान मंत्री बनाया था। शास्त्री जी के समय में तमिलनाडु में हुआ हिंदी विरोधी आंदोलन सन 1965 में हिंदी भाषा को ही राष्ट्रीय भाषा के रूप में माना जाता था। तब की सारी सरकारों ने भी हिंदी को ही राष्ट्रीय भाषा के रुप में आगे रखा था । तब कुछ ऐसे राज्य थे। जो की हिंदी नहीं बोलते थे उनको हिंदी से नफ़रत हो गई थी । तब शास्त्री जी ने बोला था के आप अपनी भाषा इंग्लिश बोल सकते है जब तक आप चहते हो तब उनके इस बात को बोलने से बहुत सारे के सारे दंगे ख़तम हुए थे।
वित्तीय नीतियाँ
शास्त्री जी ने नेहरू के किये हुए काम के ऊपर वह चलते हुए उनकी सारी नीतियों को लागु रखा था। उन्होनें सफ़ेद का्ंति को भी ऊपर ले आने में योगदान दिया था। उन्होंने उस समय में अमूल आनंद जैसी कंपनियों को भी आगे बढाया था। 1965 में उन्हें नेशनल डेयरी बोर्ड की भी सफलता मिली थी।
उस समय में भारत में भोजन की काफी ज्यादा समस्या थी । शास्त्री जी ने इस को दचर करने के लिए लोगों को एक समय का भोजन छोड़ने को बोला था । ताकि वो भोजन उन लोगों को मिल सके जिनको भोजन आसानी से प्राप्त नहीं होता था। उनके ऐसे करने पर बाजार की दुकानें भी बंद रहने लगी थी।
जिसका कारण इसको शास्त्री ब्रत के तौर पर भी जाना जाता है। 1965 में जब भारत की पाकिस्तान के साथ जंग हो रही थी। तब उन्होंने दुबारा जय जीवान जय किसान का नारा भी दिया गया था। शास्त्री जी ने 1965 में ग्रीन कां्ति को भी बढावा दिया था। जिसके कारण भारत के बहुत सारे राज्यो में अनाज की अच्छी पैदावार हुई थी। उन्हें खाद्य निगम अधिनियम 1964 के तहत कार्यान्वित किया गया था।
शास्त्री जी ने नेहरू जी की जारी रखी हुई नीतियों को ही लागु रखा । पर जब पाकिस्तान और चीन के बढ़ते हुए संबंधो के कारण इन्होंने सोरवितम संघ से अपना मेल जोल बड़ा लिया था। भारत और पाकिस्तान की हुई इस जंग को संयुक्त राष्ट्र के साथ मिलकर खत्म किया था। शास्त्री जी ने अपनी इस नीति के चलते हुए और भी काफी सारे देश का दोरा किया था।
राजकीय सम्मान
शास्त्री जी को भारत रत्न पुरस्कार दिया गया है।
लाल बहादुर शास्त्री की विनम्रता की कहानियाँ
जब लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री थे तो वह एक राज्य का दौरा करने वाले थे, लेकिन किन्हीं कारणों से आखिरी वक्त पर यह दौरा रद्द करना पड़ा। राज्य के मुख्यमंत्री ने शास्त्री से कहा कि उनके रहने के लिए प्रथम श्रेणी की व्यवस्था की जा रही है, जिस पर लाल बहादुर शास्त्री ने उनसे कहा कि वह तृतीय श्रेणी के व्यक्ति हैं इसलिए प्रथम श्रेणी की व्यवस्था की कोई आवश्यकता नहीं है। इससे प्रधानमंत्री रहते हुए भी उनकी सादगी एक मिसाल है |
लाल बहादुर शास्त्री भारत के प्रधान मंत्री बने लेकिन उनका जीवन एक सामान्य व्यक्ति जैसा था। वह अपने कार्यकाल के दौरान मिलने वाले भत्ते और वेतन की मदद से पूरे परिवार का भरण-पोषण करते थे। एक बार जब उनके बेटे ने प्रधान मंत्री कार्यालय की कार का उपयोग किया, तो शास्त्री ने कार के निजी उपयोग के लिए पूरी राशि सरकारी खाते में भुगतान कर दी।
हैरानी की बात ये है कि देश के प्रधानमंत्री के पास न तो अपना घर है और न ही कोई संपत्ति. जब लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु हुई तो उनके पास कोई जमीन या संपत्ति नहीं थी बल्कि एक कर्ज था, जो उन्होंने प्रधानमंत्री बनने के बाद फिएट कार खरीदने के लिए सरकार से लिया था। परिवार को कर्ज चुकाना था, जिसमें शास्त्री की पेंशन खर्च हो गई |
लाल बहादुर शास्त्री की मौत एक रहस्य !
लाल बहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shastri) की मौत एक रहस्य बनी हुई है. लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु 11 जनवरी 1966 को ताशकंद, उज्बेकिस्तान में हुई। शास्त्री युद्ध के बाद भारत-पाकिस्तान यथास्थिति पर बातचीत करने के लिए पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान से मिलने ताशकंद गए। हालांकि, पाकिस्तानी राष्ट्रपति से मुलाकात के कुछ ही घंटों बाद उनकी अचानक मौत हो गई. बताया गया कि उनकी तबीयत बिल्कुल ठीक थी. लेकिन उनकी मौत की जांच के लिए बैठी राज नारायण जांच कमेटी ने कोई ठोस नतीजा नहीं निकाला |