Subhash Chandra Bose Series Part-2: जब देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार हुए सुभाष चंद्र बोस
Subhash Chandra Bose Series: भारतीय राष्ट्रवादी सुभाष चंद्र बोस की देशभक्ति ने कई भारतीयों पर अमिट छाप छोड़ी है। नेता जी सुभाष चंद्र बोस पर भगवद गीता का काफी प्रभाव था और उन्होंने इसे अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई के प्रेरणा स्रोत के रूप में देखा। छोटी उम्र से ही सुभाष चंद्र बोस स्वामी विवेकानंद के सार्वभौमिकतावादी और राष्ट्रवादी विचारों से काफी प्रभावित थे।
जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस कांग्रेस पार्टी के सदस्य थे, तब वे समाजवाद और साम्यवाद के विचारों की ओर आकर्षित हुए। हालाँकि, बोस ने सोचा कि यह भारत में कामयाब होगा अगर राष्ट्रीय समाजवाद और साम्यवाद दोनों को मिला दिया जाए।
उन्होंने लैंगिक समानता, धर्मनिरपेक्षता और अन्य उदारवादी विचारधाराओं का समर्थन किया, लेकिन उन्हें नहीं लगता था कि लोकतंत्र भारत के लिए आदर्श था।
राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार हुए सुभाष चंद्र बोस
ब्रिटिश सरकार ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) को 2 जुलाई, 1940 को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। 29 नवंबर, 1940 को सुभाष चंद्र बोस ने जेल में अपनी गिरफ्तारी के खिलाफ भूख हड़ताल शुरू कर दी ।
इसके एक हफ्ते बाद 5 दिसंबर को गवर्नर जॉन हर्बर्ट ने सुभाष चंद्र बोस को एंबुलेंस में घर भेज दिया ताकि ब्रिटिश सरकार पर उनके जेल में मरने का आरोप न लगे। हर्बर्ट का इरादा बोस की सेहत में सुधार होते ही उन्हें फिर से हिरासत में लेने का था।
सरकार ने ना केवल 38/2 अलीगन रोड स्थित उनके घर के बाहर सादी वर्दी में एक भारी पुलिस पहरेदार तैनात किया बल्कि घर के अंदर क्या चल रहा है, इसका पता लगाने के लिए अपने कुछ जासूस भी रखे। उनमें से एक जासूस एजेंट 207 ने सरकार को सूचित किया था कि सुभाष चंद्र बोस ने जेल से घर लौटने के बाद जौं का दलिया और सब्जी का सूप पिया था।
उस दिन के बाद से उनसे मिलने वाले हर व्यक्ति की गतिविधियों पर नजर रखी जाने लगी और बोस द्वारा भेजा गया हर पत्र पोस्ट ऑफिस में ही खोला और पढ़ा जाने लगा |
आमार एकटा काज कोरते पारबे ?
सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) के पोते और शिशिर बोस के बेटे सौगत बोस ने मुझसे कहा, “सुभाष ने मेरे पिता का हाथ पकड़ा और उनसे पूछा ‘आमार एकटा काज कोरते पारबे ?’
इसका यह मतलब था कि ‘क्या तुम मेरे लिए एक काम करेंगे?’ बिना यह जाने कि काम क्या है, शिशिर मान गए। बाद में पता चला कि वे भारत को चुपके से छोड़ने के लिए शिशिर की मदद लेना चाहते थे।
योजना यह थी कि शिशिर अपने चाचा को देर रात अपनी कार में कलकत्ता से दूर किसी रेलवे स्टेशन पर ले जाएगा। सुभाष और शिशिर तय करते हैं कि वे घर के मुख्य दरवाजे से बाहर निकलेंगे।
सुभाष (Subhash Chandra Bose) और शिशिर तय करते हैं कि वे घर के मुख्य दरवाजे से बाहर निकलेंगे। उनके पास दो विकल्प थे या तो वे अपनी जर्मन वोडरर कार का उपयोग करें या अमेरिकी स्टडबेकर कार। अमेरिकी कार बड़ी थी जिससे उसकी पहचान करना आसान हो गया था। इसलिए वोडरर कार को चुना गया।
शिशिर कुमार बोस अपनी पुस्तक द ग्रेट एस्केप में लिखते हैं, “हम मध्य कलकत्ता में वैचल मौला डिपार्टमेंट स्टोर गए और नेताजी ने भेष बदलने के लिए कुछ ढीली सलवार और एक फ़ेज़ टोपी खरीदी।”
अगले कुछ दिनों में हमने एक सूटकेस, एक अटैची, दो कार्टवूल शर्ट, कुछ प्रसाधन सामग्री, एक तकिया और एक कंबल खरीदा। मैंने एक फेल्ट हैट पहनी और एक प्रिंटिंग प्रेस में गया और वहां मैंने सुभाष के लिए विजिटिंग कार्ड ऑर्डर किए |
इस कार्ड पर लिखा था, मुहम्मद जियाउद्दीन, बीए, एलएलबी, ट्रैवलिंग इंस्पेक्टर, द अंपायर ऑफ इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड, स्थाई पता, सिविल लाइंस, जबलपुर। नेताजी की माता को भी भनक तक नहीं थी वे जा रहा |
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